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Showing posts from 2009

विरोध करने वालो! चलो ख़ुशी मनाते हैं

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भारत की ग़रीबी को बेचने के नाम पर बहुत हो लिया विरोध , अब ख़ुशी मना ली जाए। ख़ुशी इस बात की कि ऑस्कर में भारत का झंडा इस शान से फहराया कि आज हर ज़ुबान पर ` जय हो ´ का नारा है , और जो नहीं जानते कि ´ जय हो ´ क्या है , वे भी इस ख़बर के सुरूर में झूम रहे हैं कि ऑस्कर के इतिहास में एक रात भारत के नाम रही , या कह लें कि अगला एक साल भारत के नाम रहेगा। तो फिर उन लोगों को क्या तकलीफ है जो पहले ही दिन से इस फ़िल्म का यह कहकर विरोध करते रहे हैं कि भारत की ग़रीबी को दिखाकर पैसा बटोरा जा रहा है। विरोध करने वालों से तीन सवाल हैं - पहला यह कि , क्या भारत में बनने वाली फ़िल्मों में कभी भारत की इस तस्वीर को नहीं दिखाया गया ? याद नहीं पड़ता कि मीरा नायर की ` सलाम बॉम्बे ´ पर कभी विवाद हुआ हो। दूसरा यह कि , क्या फ़िल्मों या किसी भी दूसरे ज़रिये से बाहर के मुल्कों तक भारत की बेहतर तस्वीर नहीं जाती। मसलन , बंगलुरु या हैदराबाद की वो तस्वीर जो सिलिकॉन वैली को मात देती दिखती है और मिस यूनिवर्स तथा मिस वर्ल्ड जैसे मुक़ाबले जिनमें भारत अलग ही रंग में सामने आता है। और तीसरा यह कि , क्या इस फ़िल्म में

बिल्लू! इतना इमोशनल अत्याचार किसलिए रे..

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प्यारे शाहरुख , इस फ़िल्म दर्शक की तुम्हें राम - राम भइया। ... लेकिन बधाई कतई नहीं। किसलिए दी जाए बधाई ?? अपने चाहने वालों का भरोसा तोड़ने के लिए ??? ` बिल्लू ´ किसलिए देखने गया होगा कोई ... सोचो , सोचो !! लारा दत्ता के लिए या इरफान के लिए ? जवाब तुमको भी पता है। लोग तुम्हारे लिए जाते हैं .. क्योंकि वो तुम्हें प्यार करते हैं , तुम्हें चाहते हैं। इमोशनल है सबके सब। पर तुमने क .. क .. क .. क .. क्या किया उनके साथ ! सवा दो घंटे तक घोर अत्याचार !! और फिर जाते - जाते मंच पर खड़े होकर दोस्ती के बारे में लंबी बयानबाजी कर गए और फिर से इमोशनल कर दिया। यानी , अत्याचार के बाद महा अत्याचार !! रेड चिली बैनर तले बनी तुम्हारी यह फ़िल्म इतनी फीकी निकलेगी कि बाद में ग्रीन चिली खाकर मुंह का स्वाद फिर से बनाना पड़े ... ऐसा नहीं सोचा था। और हां , फ़िल्म के शुरू में तुम्हारे क़िरदार ने ` बुदबुदा गांव ´ का नाम बुदबुदाया था ... वो भला क्योंकर ??? उसका लॉजिक तो आख़िर तक साफ नहीं हो पाया। तुम्हारे क़िरदार को पता था कि उसका बचपन का दोस्त वहीं मिलेगा ? यह तो सिर्फ फ़िल्म के निर्देशक प्रियदर्शन को

हमला हमास पर या फलस्तीनियों पर?

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अगर इज़रायल पूरी दुनिया से यह कहता फिर रहा है कि गाज़ा में उसके ताज़ातरीन हमले हमास के आतंकवादियों के खिलाफ हैं , तो वह सरासर झूठ बोल रहा है। मंगलवार को इज़रायली सेना जिन स्कूलों पर गोले दाग कर 46 से ज़्यादा बेगुनाह लोगों की मौत की वजह बनी , उन्हें संयुक्त राष्ट्र की ओर से चलाया जा रहा था। ऐसे करीब पच्चीस स्कूलों में पंद्रह हज़ार से ज़्यादा फलस्तीनी नागरिक पनाह लिए बैठे हैं। इनमें से कुछ स्कूलों पर ज़मीनी हमले किए जाने से साफ है कि यह आतंकवाद के खिलाफ इज़रायल की जंग नहीं है बल्कि एक ऐसा नकाब है जिसके पीछे वह अपनी असली करतूत छुपा रहा है। गाज़ा के शहरों में घुसी इज़रायली सेना ने पहले तो नागरिकों को अपनी जान की सलामती के लिए घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों में शरण लेने को कहा , और फिर उन्हीं ठिकानों पर हमला कर दिया जहां ये लोग खुद को सुरक्षित मान कर रहने चले गए थे। एक ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने इन स्कूलों को उन लोगों के लिए पनाहगाह में बदला था , जो हमास और इज़रायल के बीच चल रहे युद्ध में बेवजह पिस रहे थे। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की - मून ने इन हमलों की निंदा करते हुए बुधवार को