मुस्कराते रहिए ‘घनचक्कर’ के चक्कर में फंसकर
यथा नाम तथा गुण ! ‘ घनचक्कर ’ पर यह बात सटीक बैठती है। यह फिल्म दर्शक को अंतिम दृश्य तक बेतरह घनचक्कर बनाए रखती है और दर्शक मौके-दर-मौके मनोरंजन की पुड़िया गटकता जाता है। अगर आप सिनेमाहॉल में कदम यह सोच कर रख रहे हैं कि इमरान हाशमी अभिनीत पात्र ही घनचक्कर है तो ‘ भूल ’ जाइए। असल में इसके सारे ही किरदार घनचक्कर हैं और फिल्म खत्म होने पर आपको समझ आता है कि इन पात्रों के साथ आप भी पूरा वक्त घनचक्कर बने हुए थे। फिर आप क्या करते हैं ? मुस्कुराते हैं और अपने आस-पास देखते हैं। अरे ! ये सब भी तो मुस्कराए जा रहे हैं। राजकुमार गुप्ता निर्देशित ‘ घनचक्कर ’ की कहानी इसकी आत्मा है तो अभिनय इसकी प्राणवायु। कहानी को इस तरह से बुना गया है कि दर्शक पूरा वक्त अंदाजा लगाता रह जाता है। ‘ नोटों से भरा बैग आखिर है कहां... ’ , इस सवाल पर अनुमान पल-पल बदलते हैं। अभी संजय आत्रे (इमरान हाशमी) झूठ बोलता लग रहा है तो अभी नीतू भाटिया ( विद्या बालन ) झूठी लगती है। नीतू तर्क रखती है तो संदेह का कुतुबनुमा फिर संजय की ओर मुड़ जाता है। इस बीच एक पारिवारिक मित्र और एक टैक्सी ड्राइवर भी अनुम