ज़िंदगी का गीत


हाथ में झोला टांग ले भइया
समय से फ़ुरसत मांग ले भइया
चल, दुनिया देखन चलते हैं...

अनजाने से रस्ते होंगे
लेकिन हाल समझते होंगे
तेरी उंगली थाम चलेंगे
सुबह, दुपहरी, शाम चलेंगे
नए-नए से रंग सफ़र के
करके तेरे नाम चलेंगे
आँखें थोड़ी चमकीली कर
दिल में थोड़ी-सी हिम्मत भर

आ जा निकलें उन राहों पर
नए तज़ुर्बों वाले जिन पर
लाखों रंग खिला करते हैं
चल, दुनिया देखन चलते हैं...

रंग, नज़ारे, लोग नए-से
पुरबा, पानी, भोग नए-से
हर सू नई रवायत होगी
दोहे कहीं पे आयत होगी
दिल की गांठें खुल जाएंगी
फिर न कोई शिकायत होगी
खुलकर जो परवाज़ भरेगा
आँखों का जाला निकलेगा
तू धरती का
हो जाएगा 
अम्बर तुझमें आन मिलेगा
देह को अब ज़िंदा करते हैं
चल, दुनिया देखन चलते हैं...

तेरी दुनिया से भी आगे
इक दुनिया है, गर तू जागे
बैठे-ठाले बहुत जिया रे
अब तो अपना छोड़ ठिया रे
पोथी है यह जीवन सारा
पन्ने इसके पढ़ ले सारे
घर में जो दुबका है डर से
वो जीवन जीने को तरसे
लेकिन बोझ हटा के सर से
बेमक़सद जो निकले घर से
ठौर उसे ही सब मिलते हैं
चल, दुनिया देखन चलते हैं...

Comments

Popular posts from this blog

ख़ामोशी के शब्द

नई ग़ज़ल

हमला हमास पर या फलस्तीनियों पर?