यूं होता है अक्सर...
समंदर के किनारे
रेत के घरौंदे पर
लिखने ही लगता है कोई
अपने प्रिय का नाम
कि लहर आती है
और छोड़ जाती है
अपने आने का निशान
आधी छुट्टी की घंटी
बजते ही
बगूले की तरह भागते हैं बच्चे
कक्षा छोड़कर
और गणित की उलझन का
हल लिखने के लिए
श्यामपट की ओर बढ़ते मा’स्साब
हक्क-बक्क खड़े रह जाते
हैं
खड़िया हाथ में पकड़े
हुए
प्यार की तलाश में
निकलने वालों के साथ भी
ऐसा ही घटता है अमूमन
प्रेम का सागरमाथा छूने को
पल-पल बढ़ रहे होते हैं
लगन और उम्मीद के साथ
कि निकल जाती है
पैरों के नीचे से ज़मीन अचानक
और भरभराकर
रसातल की राह पकड़ लेता है
पैरों के नीचे से ज़मीन अचानक
और भरभराकर
रसातल की राह पकड़ लेता है
विश्वास का हिमालय
Comments
बहुत बढ़िया...
मगर लहरों की पहुँच से दूर कहीं पत्थरों पर नाम उकेरें तो???
@विद्या जी, पत्थरों पर उकेरा नाम बना तो रहेगा लेकिन @रश्मि जी की मानें तो बुरा लगेगा जब लहरें उन्हें बार-बार आगोश में लेंगी, उनपर अपना सर्वस्व न्योछावर करती दिखेंगी...
@दीपिका, सही कहा कि इंतज़ार की कसक का अपना सुख है और हर महान प्रेमकथा दुःखांत होती है। लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि हर दुःखांत प्रेमकथा महान ही हो...