ये तेवर कुछ नये नहीं

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका, सियासी रंग में रंगा माहौल, सियासतदान के खासमखास लोगों की दंबगई, जब चाहे खूनखराबा करना, कोई कानून-व्यवस्था नहीं, दबंगों के तलवे चाटने वाले पुलिसवाले, खूबसूरत लड़की, विलेन का लड़की को देखते ही आसक्त हो जाना, शादी के लिए जबरदस्ती राजी करने की कोशिश, हीरो से प्यार होना, फिर से खूनखराबा, आखिरकार हीरो का जीतना... और लीजिए हो गई हैप्पी एंडिंग। तय है कि आपको यह सारी सामग्री जानी-पहचानी लग रही होगी। ऐसे में आप यह कल्पना भी कर पा रहे होंगे कि इस तरह की सामग्री को मिलाकर जो पकवान बनेगा, वह कैसा होगा। चूंकि आपने इस सामग्री से बने व्यंजन इससे पहले सैकड़ों बार चखे होंगे, तो फिर इन्हीं से मिलकर बनी फिल्म तेवर को लेकर आप कितने उत्साहित हो सकते हैं, यह बात आपसे बेहतर कौन जान सकता है।
फिल्मवालों की भाषा में कहें तो तेवर का वनलाइनर यही है कि एक खूबसूरत लड़की राधिका पर गजेंद्र नामक एक दबंग का दिल आ गया है और फिर लड़की को जबरदस्ती हासिल करने की कोशिश के साथ कहानी आगे बढ़ती है; लड़की को बचाने वाला फिल्म का नायक है, यह तय है; लड़की के लिए पिंटू शुक्ला नामक वो नायक सपनों का राजकुमार है जिसकी खातिर वह सबकुछ छोड़ देना चाहती है। लड़की केंद्र में है और उसके आस-पास नायक तथा दबंग की जोर-आजमाइश चलती जा रही है।
क्या क्या...??? क्या कहा? कुछ याद आ रहा है? सिर्फ 12-13 महीने पहले की बात है? फिल्म आर... राजकुमार में भी ऐसा ही कुछ था? सिर्फ किरदारों का खाका अलग था और कहानी का ढांचा अलग तरीके से बना था, लेकिन नींव इन्हीं चंद बातों को लेकर बैठाई थी जिनका उल्लेख मैंने शुरू में कर दिया? दोस्त! आप बिल्कुल सही सोच पा रहे हैं। मेकअप अलग कर देने से सूरत नहीं बदल जाती। वहां रोमियो था, यहां पिंटू है; वहां चंदा थी, यहां राधिका है; वहां शिवराज था, यहां गजेंद्र है; वहां भी अंत में बुरी तरह से घायल रोमियो अपनी चंदा को लेकर मुस्कराता हुआ निकल लेता है, यहां भी पेट में चाकू का वार सह चुकने के बाद भी जिंदा बचा पिंटू अपनी राधिका को लेकर चला जाता है।
अमित शर्मा निर्देशित तेवर 12 साल पहले आई एक बेहद सफल दक्षिण भारतीय मसाला फिल्म से प्रेरित है, तो वहींआर... राजकुमार को भी दक्षिण भारत का एक्शन मसाला उधार लेकर बनाया गया था। अगर तलवारें-लहराना-चाकू-घोंपना-कलाबाजी-खाना-किक-जमाना-खून-बहानावाले एक्शन ड्रामा से आप भली-भांति परिचित हैं, तो फिर कुछ नयेपन की उम्मीद करके तेवर देखेन जाना बेमानी होगा। कुछ-कुछ जगहों पर अच्छे संवादों से भरी तेवर को अगर आप नवीनता के लिए देखने जाएंगे तो निराश होंगे, लेकिन बासी कंटेंट के बावजूद यह फिल्म अपनी कसावट के लिए आपको जरूर पंसद आ सकती है। फिल्म को न केवल अच्छी तरह से सहेजा गया है, बल्कि कलाकारी के मानदंडों पर भी तेवर को अच्छी पेशकश कहा जाएगा। मनोज बाजपेयी (गजेंद्र सिंह) के साथ सुब्रत दत्ता (काकड़ी) की दमदार अदाकारी और राज बब्बर (एसपी) एवं राजेश शर्मा (महेंद्र सिंह) के संयमित अभिनय के अलावा अर्जुन कपूर अपने किरदार में रमे हुए नजर आएंगे। जिस तरह की चुनौती अर्जुन के सामने थी, उसे देखते हुए वह असरदार रहे हैं। हर फिल्म के साथ निखर रहे अर्जुन बॉलीवुड के अगले एंग्री यंगमैन के तौर पर अपना पुख्ता दावा पेश करते लगते हैं। हालांकि अपने उच्चारण की स्पष्टता पर उन्हें खास ध्यान देना होगा। सोनाक्षी सिन्हा के लिए यह किरदार बहुत बड़ी चुनौती नहीं रहा होगा; खलनायक का दिल पिघलने की वजह बनी और फिर बिगड़ैल हीरो के प्यार में उलझती नायिका की भूमिकाएं सोनाक्षी इससे पहले आर.. ऱाजकुमारमें चंदा और वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा में जैसमीन बनकर निभा चुकी हैं। उनसे कुछ बेहतर कर दिखाने की उम्मीद के साथ.... नमस्कार!!!

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