लोकतंत्र
1) रगड़-रगड़ कर चमकाया जा रहा है सड़क को। कल शाम यह भीग गई थी उन लोगों के लहू से जो मूक रहकर कर रहे थे कोशिश अपनी आवाज़ सुनाने की और इसके बदले में जिन्होंने झेली थीं लाठियां। इस सड़क से रोज़ की तरह आज भी गुजरेंगी उन लोगों की गाड़ियां जिन्हें हमने खड़ा किया है अपनी आवाज़ बनाकर जो करते हैं फ़ैसला कि कब आवाज़ उठाना क्रांति माना जाए और मौन रहना अपराध। सड़क की लाली आज अख़बारों ने ले ली है सड़क निष्कलंक चमक रही है उधर , दीवार पर चस्पां एक पोस्टर बोल रहा है- मताधिकार का प्रयोग करके लोकतंत्र को मज़बूत बनाएं। 2) नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं थीं नजरें झुका लीं... तर्कों का जवाब नहीं था कोई चुप्पी ओढ़ ली... आवाज़ उठी तो ख़तरे की आहट सुनाई दी आवाज़ दबा दी...। 3) अत्याचार की कहानी कहती शहर की सड़कें लाल थीं सुबह छपकर जो हाथ में पहुंचा उस अख़बार की ख़बरें लाल थीं हर कोई रो रहा था देश की आंखें लाल थीं अहिंसा का पुजारी तस्वीर बनकर लोकतंत्र के मंदिर में हर दीवार पर टंगा है ...वो केवल तस्वीरों में मुस्कराता है