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Showing posts from 2012

अंकोर काल के गलियारों से गुज़रते हुए

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उत्तर-पूर्वी कोने से खींची गई अंकोर वाट मंदिर की तस्वीर। इसी कोने में कभी राजमहल होता था यह बात मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि उस समय यदि कोई मेरे चेहरे को पढ़ता तो उसे वहां विस्मय , प्रसन्नता और संतुष्टि के मिल-जुले भाव नज़र आते। एक सवाल जो मेरे मन में बरसों से उमड़ रहा था और जिसका जवाब मुझे कहीं नहीं मिल पाया था , वो सवाल अचानक अपने मायने खो बैठा था। सब कुछ कांच की तरह साफ था और सच मेरे सामने मुंह बाये खड़ा था... वो सच यह कि उस धरती पर राम के आदर्शों ने ही नहीं , कभी कृष्ण की नीतियों ने भी पांव धरा था। अंतर बस इतना कि जहां राम आज भी वहां के जनमानस में नायक की पदवी पर विराजमान हैं और आस्था के आधार में समाहित हैं , वहीं कृष्ण की गाथाएं समय की गर्त में विलीन होती गई हैं और केवल मंदिरों में हुई नक्काशी में ही सांस लेती नज़र आती हैं। मंदिर के पश्चिमी गलियारे के दक्षिणी हिस्से में महाभारत का दृश्य उस वक़्त मैं खमेर लोगों की धरती कंबोडिया में था और 900 बरस की उम्र पार कर चुके अंकोर वाट मंदिर के बाहरी पश्चिमी गलियारे में खड़ा था। गलियारे के बीचो-बीच एक अलंकृत प्रवेश द्वार था जो...

मालदीव- इस बार सुनामी सत्ता के समंदर में

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यह काहिरा का तहरीर चौक या बहरीन की राजधानी मनामा का पर्ल चौराहा नहीं था , और न ये दमश्क की गलियां थीं ;   न ही यहां पर उतनी तादाद में लोग जमा थे जितने एक साल पहले काहिरा , दमश्क या मनामा में अपने-अपने देश के शासक से मुक्ति पाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। पर इनका मक़सद कमोबेश वैसा ही था। यह हिंद महासागर में कुल 1192 टापुओं से मिलकर बने देश मालदीव की राजधानी माले की गलियां थीं जिनमें 16 जनवरी से हर रोज़ हज़ारों लोग जुट रहे थे। ये लोग राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद की नीतियों के विरोध में उनसे इस्तीफ़े की मांग कर रहे थे। आंदोलन शुरू होने के 22 दिन बाद 6 फरवरी को आंदोलनकारियों की तादाद 12 हज़ार तक पहुंच चुकी थी। पुलिस विद्रोहियों के साथ थी। शाम होते-होते सेना भी आंदोलनकारियों के साथ आ खड़ी हुई।  माले के कोने-कोने में लोगों के रेले थे। सवा तीन लाख की आबादी वाले इस देश ने पहली बार अपने लोगों को इतनी बड़ी संख्या में एक साथ देखा था। इसके अगले दिन सुबह एक ख़बर हर चैनल पर थी- ‘ मालदीव में तख्तापलट! राष्ट्रपति नशीद ने पद छोड़ा। ’ कुछ देर बाद ख़बर आई- ‘ उपराष्ट्रपति मोहम्मद वहीद ...

पलटिए थाई विरासत के पन्नों को

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नदी किनारे बने हैं राजमहल और सूर्योदय मंदिर... मंदिर के दूसरे तल से उस पार राजमहल दिखता है बैंकॉक के चमचमाते मॉल्स में शॉपिंग करने और भीड़भाड़ वाली सड़कों पर थाई भोजन का स्वाद लेते हुए तफरीह करने के अलावा इस शहर का असल आकर्षण इसकी आलीशान विरासत है। इस विरासत को देखे-समझे बिना ही अगर कोई बैंकॉक को अलविदा कहकर जाता है तो समझिए वो बहुत कुछ छोड़कर जा रहा है। अपनी पहली थाईलैंड यात्रा के दौरान बैंकॉक में दो दिन गुजारने के बावजूद मैं इसकी विरासत से रू-ब-रू होने का मौका नहीं निकाल पाया था। एक कसक मन में बनी रही...और यह तब तक ख़त्म नहीं हुई जब तक अपनी अगली यात्रा में मैं इन जगहों पर हो नहीं आया। वट अरुण मंदिर, राजसी महल तथा एमरेल्ड बुद्ध मंदिर में विचरने और छोटे-से-छोटे विवरण की तस्वीर ज़हन पर उतारने के बाद एक सवाल मन में आया कि क्या अपनी पहली यात्रा में मैं सचमुच बैंकॉंक होकर गया था, या कि बस इस भुलावे में जी रहा था कि मैंने बैंकॉक देख रखा है। ...और तभी मुझे एक और भुलावे की याद आई- जो हमारी ट्रेवल एजेंसियां अपने ग्राहकों को टूर पैकेज की शक्ल में देती है ; जिसमें आधे दिन का बैंकॉक सिटी...