अंकोर काल के गलियारों से गुज़रते हुए
उत्तर-पूर्वी कोने से खींची गई अंकोर वाट मंदिर की तस्वीर। इसी कोने में कभी राजमहल होता था यह बात मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि उस समय यदि कोई मेरे चेहरे को पढ़ता तो उसे वहां विस्मय , प्रसन्नता और संतुष्टि के मिल-जुले भाव नज़र आते। एक सवाल जो मेरे मन में बरसों से उमड़ रहा था और जिसका जवाब मुझे कहीं नहीं मिल पाया था , वो सवाल अचानक अपने मायने खो बैठा था। सब कुछ कांच की तरह साफ था और सच मेरे सामने मुंह बाये खड़ा था... वो सच यह कि उस धरती पर राम के आदर्शों ने ही नहीं , कभी कृष्ण की नीतियों ने भी पांव धरा था। अंतर बस इतना कि जहां राम आज भी वहां के जनमानस में नायक की पदवी पर विराजमान हैं और आस्था के आधार में समाहित हैं , वहीं कृष्ण की गाथाएं समय की गर्त में विलीन होती गई हैं और केवल मंदिरों में हुई नक्काशी में ही सांस लेती नज़र आती हैं। मंदिर के पश्चिमी गलियारे के दक्षिणी हिस्से में महाभारत का दृश्य उस वक़्त मैं खमेर लोगों की धरती कंबोडिया में था और 900 बरस की उम्र पार कर चुके अंकोर वाट मंदिर के बाहरी पश्चिमी गलियारे में खड़ा था। गलियारे के बीचो-बीच एक अलंकृत प्रवेश द्वार था जो...