वो ख़ुशकिस्मत था कि लौट आया. या बदकिस्मत?
इस फिल्म में ऑस्कर शिंडलर जैसी कोई शख़्सियत नहीं थी जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में मौजूद शिविरों में नाज़ी सेना के हाथों अत्याचारों का शिकार हो रहे पोलिश यहूदियों को बचाकर अपने कारखानों में नौकरी दे देती। अगर कुछ सामने थी तो वो थी इन्सान के हाथों इन्सानियत का गला घोंटे जाने की दास्तां - एक ऐसी दास्तां जिसे देखकर आंखें गीली होने लगें और हमें इन्सान के रूप में अपने वजूद पर शर्म आने लगे। हंगरी की यह फिल्म ` फेटलेस ´ आपको उस दौर में ले जाती है जब नाज़ी शिविरों में हैवानियत का खेल खेला जा रहा था। फिल्म देखते वक़्त यूं लगा कि सबकुछ सामने घटित हो रहा है और इधर मेरे भीतर कुछ छिलता जा रहा है। कहानी बुडापेस्ट में रहने वाले 14 साल के यहूदी लड़के जॉर्ज कोवेश की है। या यूं कहें कि उस दौर के उन यहूदियों की जिन्हें यूरोप के अलग - अलग देशों से इकट्ठा करके जानवरों की तरह लादकर नाज़ी शिविरों में ले जाया गया ... लेकिन कहानी घूमती इसी लड़के के आसपास है। उस दिन जॉर्ज ने स्कूल से छुट्टी ली थी। उसके पिता को जर्मनी के लेबर कैंप के लिए बुलावा आया था और आखिरी दिन उसे अपने पिता के साथ गु...