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Showing posts from October, 2008

वो ख़ुशकिस्मत था कि लौट आया. या बदकिस्मत?

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इस फिल्म में ऑस्कर शिंडलर जैसी कोई शख़्सियत नहीं थी जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में मौजूद शिविरों में नाज़ी सेना के हाथों अत्याचारों का शिकार हो रहे पोलिश यहूदियों को बचाकर अपने कारखानों में नौकरी दे देती। अगर कुछ सामने थी तो वो थी इन्सान के हाथों इन्सानियत का गला घोंटे जाने की दास्तां - एक ऐसी दास्तां जिसे देखकर आंखें गीली होने लगें और हमें इन्सान के रूप में अपने वजूद पर शर्म आने लगे। हंगरी की यह फिल्म ` फेटलेस ´ आपको उस दौर में ले जाती है जब नाज़ी शिविरों में हैवानियत का खेल खेला जा रहा था। फिल्म देखते वक़्त यूं लगा कि सबकुछ सामने घटित हो रहा है और इधर मेरे भीतर कुछ छिलता जा रहा है। कहानी बुडापेस्ट में रहने वाले 14 साल के यहूदी लड़के जॉर्ज कोवेश की है। या यूं कहें कि उस दौर के उन यहूदियों की जिन्हें यूरोप के अलग - अलग देशों से इकट्ठा करके जानवरों की तरह लादकर नाज़ी शिविरों में ले जाया गया ... लेकिन कहानी घूमती इसी लड़के के आसपास है। उस दिन जॉर्ज ने स्कूल से छुट्टी ली थी। उसके पिता को जर्मनी के लेबर कैंप के लिए बुलावा आया था और आखिरी दिन उसे अपने पिता के साथ गु...

वो लम्हा आंखों देखा.....

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गुरुवार की शाम को जब मुझे बताया गया कि अगले दिन मोहाली टेस्ट मैच के पहले दिन की ऑफ - बीट कवरेज के लिए मुझे दर्शकों के बीच जाकर बैठना है , तब मुझे इस बात का कतई अंदाज़ा नहीं था कि आने वाला दिन मुझे उस तारीख़ी लम्हे का गवाह बनने का मौका देगा , जिसे कोई भी शख़्स अपनी निगाहों में क़ैद करना चाहता होगा। जब तक मैं मोहाली स्टेडियम पहुंचा , मैच शुरू हो चुका था। भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी के लिए उतरी थी। मैदान पर सलामी जोड़ी खेल रही थी। मैं जहां बैठा था , वहां काफी तादाद में ऑस्ट्रेलिया से आए दर्शक भी थे। यकीनन , वे चाहते थे कि भारतीय विकेट जल्दी - जल्दी गिरें। लेकिन यकीन यह भी मानिए कि हमारे अपने दर्शकों में भी ज़्यादातर ऐसे थे जो कम - से - कम दो विकेट ज़रूर गिरते देखना चाहते थे। बात जितनी अजीब थी , उसके पीछे वजह उतनी ही जानदार। उनके लिए स्कोर बोर्ड पर भारतीय टीम के आगे रनों का अंबार लगा देखने से ज़्यादा अहम था सचिन के 15 रन , ताकि वे ब्रायन लारा के रिकॉर्ड को टूटते और सचिन को दुनिया में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाला क्रिकेट खिलाड़ी बनते देख़ सकें। लेकिन इसके लिए सचिन का मैदान पर होना ज़र...

क्या होगा अतुल्य भारत का?

मेरा यह आलेख 30 सितंबर को ' दैनिक भास्कर ' के चंडीगढ़ , पंजाब व हरियाणा संस्करणों में प्रथम संपादकीय के रूप में प्रकाशित हुआ है। अतिथि देवो भव की परपंरा की दुहाई देने वाले देश में एक और विदेशी सैलानी से बलात्कार! चंडीगढ़ के एक होटल के बाहर से अगवा की गई जर्मन युवती के साथ हुए इस हादसे से जहां इस सूची में एक और नाम जुड़ गया है , वहीं सरकार में बैठे उन लोगों की पेशानी पर चिंता की लक़ीरें गहरी होना भी लाज़िमी है जो दुनिया की सामने भारत को सुरक्षित एवं बेहतर पर्यटन केंद्र के रूप में पेश करने और एक दशक के भीतर भारत में विदेशी सैलानियों की संख्या पांच गुणा करने की जुगत में हैं। पिछले दिसंबर में पर्यटन मंत्रालय की ओर से जारी एक्शन प्लान में कहा गया था कि भारत आने वाले विदेशी सैलानियों का आंकड़ा वर्ष 2017 के खत्म होते तक 2 करोड़ 50 लाख तक ले जाना है , जो अभी तक 50 लाख पर है। लेकिन साल के शुरू से लेकर अब तक विदेशी महिला पर्यटकों की हत्या , बलात्कार व यौन उत्पीड़न की आधा दर्जन घटनाओं के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली किरकिरी इस मक़सद के रास्ते का कितना बड़ा रोड़ा बनेग...