यूं होता है अक्सर...
समंदर के किनारे रेत के घरौंदे पर लिखने ही लगता है कोई अपने प्रिय का नाम कि लहर आती है और छोड़ जाती है अपने आने का निशान आधी छुट्टी की घंटी बजते ही बगूले की तरह भागते हैं बच्चे कक्षा छोड़कर और गणित की उलझन का हल लिखने के लिए श्यामपट की ओर बढ़ते मा ’ स्साब हक्क-बक्क खड़े रह जाते हैं खड़िया हाथ में पकड़े हुए प्यार की तलाश में निकलने वालों के साथ भी ऐसा ही घटता है अमूमन प्रेम का सागरमाथा छूने को पल-पल बढ़ रहे होते हैं लगन और उम्मीद के साथ कि निकल जाती है पैरों के नीचे से ज़मीन अचानक और भरभराकर रसातल की राह पकड़ लेता है विश्वास का हिमालय