समंदर के गहरे नीले पानी में नीलम की अंगूठियों की तरह छितराए छोटे - छोटे द्वीपों की तस्वीरें जब भी देखता था तो उल्लासभरा सुकून मन में भर जाता था। भारत के दक्षिण में हिंद महासागर में मौजूद छोटे - से देश मालदीव के ये करीब 1100 द्वीप इस धरती को कुदरत के किसी नज़राने से कम नहीं हैं। करोड़ों साल से मूंगे के इकट्ठा होते जाने से बने ये द्वीप जब ऊपर से देखो तो हल्के नीले रंग के नज़र आते हैं और सफेद रेत वाले इनके किनारे समंदर में घुलते हुए लगते हैं। बहुत बार होता कि एक बार - सिर्फ एक बार - इस नज़ारे को अपनी आंखों से देख पाऊं। पर वहां जाना और रहना इतना महंगा कि हर बार मन को मारना पड़ता। मालदीव के किसी रिज़ॉर्ट में रहने का मतलब विलासिता से रू - ब - रू होना है ... कांच की तरह साफ पानी , शांत लहरें , शोर - शराबे से कोसों दूर समुद्र के किनारे आराम से किताब पढऩा या कॉकटेल की चुस्कियां लेना , शानदार सी - फूड , सी - प्लेन की सवारी , ...
Comments
@प्रतिभा, वैसे 'सब तृप्त' की स्थिति विरले ही आती है..
ये ख़ामोशी की जुबां....))
हम तो बस होंठों का लरजना ही देखते रहे ....:))
लाजवाब भावनाये..नाज़ुक सी अभिव्यक्ति..
सस्नेह..
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हर राहे उन्हें याद करती रहीं
यकीन था नहीं गिरने देंगे मुझे
उनकी ख़ामोशी पे ऐतबार करती रही ||
kafi sundar shabd sanyojan...
@ अंजू जी, बहुत उम्दा लिखा...
new post...वाह रे मंहगाई...
इस पोस्ट पर आए कमेंट की वाह-वाह पर मत जाना। ऐसी वाह वाहियां छह रुपये की सिगरेट में भरी पड़ी रहती हैं। लेकिन प्रतिभा जी के कमेंट से हैरान हूं। वे सचमुच गंभीर पाठक हैं, अगर सिर्फ हौसला बढ़ाने के लिए की है, तो लानत अजय भाई आपको लिखने के लिए हौसले की तो कतई जरूरत नहीं है। आपको तो चाहिए निर्मम आलोचना दृष्टि, जो मुक्तिबोध के पास थी, नामवर खो चुके, विश्वनाथ जी अपने में गुम हैं, और मैनेजर पांडे इतिहास में चक्कर काट रहे हैं। बचा बेचारा मैं, तो अखबारी काम कर लूं।