इस शिकारी के सब तीर निशाने पर

ज़िंदगी में हम कितना भी भटक लें, शारीरिक ज़रूरतें पूरी करने के पीछे कितना भी लगे रहें, लेकिन आख़िरकार हमारे लिए जो सवाल मायने रखेगा, वो यह कि क्या कोई ऐसा इन्सान है हमारी ज़िंदगी में जो हमसे वाकई प्यार करता है... एक ऐसा साथी जिस पर हम इतना भरोसा कर सकें कि हमें कभी झूठ का लबादा ओढ़कर न जीना पड़े?”
इस गंभीर-सी लगने वाली बात को संदेश के तौर पर लेकर चली फ़िल्म हंटर सेक्स संबंध बनाने को बेसब्र रहने वाले युवा मंदार की ज़िंदगी के जरिये एक चुलबुली पेशकश के तौर पर सामने आती है। इतनी चुलबुली कि हंटर अपने पूरी अवधि के दौरान हल्के-फुल्के मनोरंजन का अच्छा ज़रिया साबित होती है। इसकी ख़ूबसूरती यह है कि इसका विषय सेक्स पर केंद्रित होने के बावजूद यह सेक्स मसाले से भरपूर फ़िल्म नहीं है, बल्कि सेक्स के आदी हो चुके एक युवा की क़शमक़श को परदे पर लाती है।
फ़िल्म का कथानक मंदार (गुलशन देवैया) नामक इंजीनियर के आस-पास घूमता है, जो यौन संबंधों को लेकर अपने आजाद ख़यालात की वजह से दोस्तों के बीच बेहद चर्चित है। फिल्म में बार-बार फ्लैशबैक में जाकर मंदार की ज़िंदगी की परतों में झांका जाता है जहां हमें एक युवक के सेक्स का आदी होते जाने तथा उसके सेक्सुअल एन्काउंटर्स की झलकियां मिलती है। वहीं वर्तमान में उम्र बढ़ने के साथ मंदार का धीरे-धीरे सेक्स से मोहभंग होने का चित्रण है। इसकी एक बड़ी वजह उसका तृप्ति (राधिका आप्टे) से उसका जज़्बाती तौर पर जुड़ते जाना है, जिससे वह शादी करके आखिरकार सेटल हो जाना चाहता है।
मंदार की ज़िंदगी का उलझा हुआ ताना-बानाहंटर की पटकथा का आधार है, जिसे लेखक ने सुलझे हुए तरीके से पिरोया है। फ़िल्म की एक बड़ी ख़ासियत यह है कि एक बिंदास लेकिन गंभीर विषय पर होने के बावजूद इसकी पेशकश हास्य से भरपूर है जो न तो हमें कहीं उबासी लेने देती है और न ही हमारे सामने नैतिकता के सवाल आते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह इसके चुटीले संवाद हैं, जो हमें हंसाते रहते हैं। नहीं, नहीं! यह ग्रैंड मस्तीटाइप की सेक्स कॉमेडी नहीं है; इसमें डबल-मीनिंग फूहड़ संवाद नहीं ठूंसे गए हैं। हंटर के संवाद स्वाभाविक हैं और सिचुएशनल भी, जिन्हें हम अपने आस-पास बोलते-सुनते रहे हैं। वो हमें अजीब नहीं लगते, बल्कि अप्रत्याशित होने की वजह से वे गुदगुदा ज़रूर जाते हैं।
रिलीज़ से पहले हंटर को सॉफ्ट पॉर्न श्रेणी की फ़िल्म बताया जा रहा था, लेकिन अपनी सवंदेनशील प्रस्तुति की वजह से यह एक अच्छी फ़िल्म के तौर पर सामने आती है। जहां तक इसके सेक्स कंटेंट का सवाल है तो वह लगभग हर बार सांकेतिक ही है। इसका एकमात्र बोल्ड दृश्य तब है जब मंदार अपनी पड़ोसन ज्योत्स्ना (साई तम्हाणकर) के साथ संबंध बनाता है। लेकिन वह दृश्य इतना स्वाभाविक बन पाया है कि कोई सवाल खड़े नहीं करता। 
फ़िल्म देखकर साफ हो जाता है कि इसके निर्देशक हर्षवर्द्धन कुलकर्णी अपनी सीमाएं न केवल जानते हैं बल्कि उन्हें निभाने का हुनर भी उनके पास है। हां, अपने आखिर में फ़िल्म को लंबा खिंचने से वे नहीं बचा पाए हैं, ख़ास तौर पर तब जब तृप्ति को सबकुछ बताकर लौट रहा मंदार दो बार काल्पनिक स्थितियां अपने चचेरे भाई दिलीप को बताता है। एक बार बताना मज़ेदार लगता है, उसे दोहराना चिड़चिड़ाहट पैदा करता है।
फ़िल्म में कलाकारों का चयन उम्दा है और लगभग सब कलाकार अपने किरदार में हैं। गुलशन अपने चरित्र की विभिन्न अवस्थाओं को बखूबी जी पाए हैं और गोलियों की रासलीला- रामलीला के बाद यह उनकी अदाकारी की लगातार दूसरी दमदार पेशकश है। साई तथा राधिका ने अपने-अपने चरित्र से पूरा न्याय किया है, वहीं दिलीप के किरदार में सागर देशमुख असरदार हैं। पारुल की भूमिका में वीरा सक्सेना भी अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराती हैं। लब्बो-लुआब यह कि हंटर एक वयस्क किंतु मनोरंजक फ़िल्म है, जिसका हम अपने हमउम्र लोगों के साथ यक़ीनन मज़ा ले सकते हैं।

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