अगर इज़रायल पूरी दुनिया से यह कहता फिर रहा है कि गाज़ा में उसके ताज़ातरीन हमले हमास के आतंकवादियों के खिलाफ हैं , तो वह सरासर झूठ बोल रहा है। मंगलवार को इज़रायली सेना जिन स्कूलों पर गोले दाग कर 46 से ज़्यादा बेगुनाह लोगों की मौत की वजह बनी , उन्हें संयुक्त राष्ट्र की ओर से चलाया जा रहा था। ऐसे करीब पच्चीस स्कूलों में पंद्रह हज़ार से ज़्यादा फलस्तीनी नागरिक पनाह लिए बैठे हैं। इनमें से कुछ स्कूलों पर ज़मीनी हमले किए जाने से साफ है कि यह आतंकवाद के खिलाफ इज़रायल की जंग नहीं है बल्कि एक ऐसा नकाब है जिसके पीछे वह अपनी असली करतूत छुपा रहा है। गाज़ा के शहरों में घुसी इज़रायली सेना ने पहले तो नागरिकों को अपनी जान की सलामती के लिए घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों में शरण लेने को कहा , और फिर उन्हीं ठिकानों पर हमला कर दिया जहां ये लोग खुद को सुरक्षित मान कर रहने चले गए थे। एक ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने इन स्कूलों को उन लोगों के लिए पनाहगाह में बदला था , जो हमास और इज़रायल के बीच चल रहे युद्ध में बेवजह पिस रहे थे। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की - मून ने इन हमलों की निंदा करते हुए बुधवार को
Comments
@प्रतिभा, वैसे 'सब तृप्त' की स्थिति विरले ही आती है..
ये ख़ामोशी की जुबां....))
हम तो बस होंठों का लरजना ही देखते रहे ....:))
लाजवाब भावनाये..नाज़ुक सी अभिव्यक्ति..
सस्नेह..
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हर राहे उन्हें याद करती रहीं
यकीन था नहीं गिरने देंगे मुझे
उनकी ख़ामोशी पे ऐतबार करती रही ||
kafi sundar shabd sanyojan...
@ अंजू जी, बहुत उम्दा लिखा...
new post...वाह रे मंहगाई...
इस पोस्ट पर आए कमेंट की वाह-वाह पर मत जाना। ऐसी वाह वाहियां छह रुपये की सिगरेट में भरी पड़ी रहती हैं। लेकिन प्रतिभा जी के कमेंट से हैरान हूं। वे सचमुच गंभीर पाठक हैं, अगर सिर्फ हौसला बढ़ाने के लिए की है, तो लानत अजय भाई आपको लिखने के लिए हौसले की तो कतई जरूरत नहीं है। आपको तो चाहिए निर्मम आलोचना दृष्टि, जो मुक्तिबोध के पास थी, नामवर खो चुके, विश्वनाथ जी अपने में गुम हैं, और मैनेजर पांडे इतिहास में चक्कर काट रहे हैं। बचा बेचारा मैं, तो अखबारी काम कर लूं।