आधी सदी बाद कैसे होंगे भारत के शहर
किसी परिचित जगह पर कुछ साल बाद जाओ तो एकबारगी सिर चकराना लाजिमी है। कोई भी ऐसी जगह जहां हमने लंबा वक्त बिताया हो ; या कोई ऐसा शहर या कस्बा, जिससे इतने समय तक वास्ता रहा हो कि वहां के गली-मोहल्लों से हम जान-पहचान बना पाए हों... ऐसी किसी जगह से फिर से रू-ब-रू होते ही हमारी हैरानी से लबालब प्रतिक्रियाएं कुछ इस तरह से होती हैं- ‘ अरे, कितना बदल गया सब कुछ.. लग रहा है किसी नई जगह आ गया हूं ! यहां पर तो सिनेमा हॉल होता था, यह मल्टीप्लेक्स कब बना ! और वहां... वहां हफ्ते में दो बार सब्जी मंडी लगती थी न... अब ये बीस मंजिला हाउसिंग सोसायटी... ! तो फिर सब्जी मंडी कहां लगती है... ? क्या ! वो लगती ही नहीं .. ! ओह... तो अब सब्जी की खरीदारी मेगास्टोर से हो जाती है... वाकई, बड़ी तरक्की कर गई यह जगह तो.. !!’ वगैरह, वगैरह...। कुल जमा बात यह कि वो परिचित जगह भी हमें नितांत अजनबी लगती है, मानो हमारे कदम वहां पहली बार पड़ रहे हों। यह तो तय है कि समय, हालात और जरूरत के मुताबिक परिवर्तन होने हैं, यह संसार का नियम है। लेकिन इन परिवर्तनों के साथ भी एक नियम जुड़ा है, और वो यह कि जो परिवर्त...