तस्वीरें जो बहुत कुछ बोलती हैं...


धूप भी वही है, परछाइयां भी वही हैं- फिर वो लातिन अमेरिका हो या हिंदोस्तान। फ़र्क सिर्फ़ उस नज़र का है जो इसे देखती है और धूप-छांह के बीच बुने रंगों की एक तस्वीर के रूप में रचना कर डालती है। चंडीगढ़ में कोई विरला ही होगा जो ब्राज़ील की राजधानी की ख़ूबसूरती से रू--रू हुआ होगा, लेकिन सवाल यह है कि अपने ही शहर को भी क्या यहां के बाशिंदों ने उस नज़र से कभी देखा होगा जिस नज़र से स्टीफन हरबर्ट देख आए हैं? 

फ्रांस के इस छायाकार की खींची तस्वीरों में चडीगढ़ का अलग ही चेहरा उभर आता है। वही सुखना झील, रॉक गार्डन का वही पुल जहां से आप फेज़-1 से फेज़-2 में जाते वक़्त दसों बार गुज़रे होंगे, वही ओपन हैंड, थोड़ी ही दूर पानी में हिलती-डुलती हाईकोर्ट की मटमैली इमारत, सेक्टर-22 का वही पार्क, और वही गांधी भवन जिस पर डाक टिकट तक छप चुका है! ...लेकिन यहां कुछ तो अलहदा है, यकीनन कुछ जुदा-जुदा सा है।

यही बात ब्राज़ीलिया के लिए है जो आर्किटेक्चर के लिहाज से चडीगढ़ से अलग ज़रूर है, लेकिन दोनों शहरों की इमारतों जगहों के रंगों, परछाइयों तथा अहमियत के तार जोड़कर हरबर्ट इन्हें एक ही नज़रिये से देखने को मजबूर करते हैं। क्या बागों ने इमारतों को आलिंगन में बांध रखा है, या फिर इन इमारतों के लिए बाग रक्त-शिराएं हो गए हैं! दोनों शहर दौड़ रहे हैं क्योंकि इनके विशाल पत्थरों की छांह में ज़िंदगी बिंदास सांस ले रही है। कमोबेश यही इन शहरों की खासियत है कि पाषाण युग के ठीक उलट इस युग में इन्सानी जात ने इन पत्थरों को जीवन की निरंतरता का तोहफा दिया है।

हरबर्ट की खींची पहली तस्वीर पर निगाह पड़ते ही भीतर कुछ ठहर-सा जाता है। क्या है यह...? एक खुशनुमा-सा एहसास है शायद, जिसका ठौर हर तस्वीर को जीने के साथ-साथ और मजबूत होता जाता है। और सारी तस्वीरें देख चुकने के बाद आप अपने कदमों को इस खुशनुमा एहसास से जकड़ा हुआ महसूस करते हैं। तस्वीरों से नज़र हटा लेने के लिए की गई आपकी मशक्कत ही आपको बता देती है कि हरबर्ट ने आप पर क्या जादू कर दिया है।

Comments

भाई अच्‍छी तस्‍वीरें हैं कभी हमारे ब्‍लाग पर भी आओ
बहुत बढ़िया तस्वीरें। बधाई
Anonymous said…
gajab yar kyan likha hai kali next paper se pata chala so aaj dekga

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