हमला हमास पर या फलस्तीनियों पर?


एक ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने इन स्कूलों को उन लोगों के लिए पनाहगाह में बदला था, जो हमास और इज़रायल के बीच चल रहे युद्ध में बेवजह पिस रहे थे। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून ने इन हमलों की निंदा करते हुए बुधवार को साफ कहा कि इन स्कूलों की लोकेशन के बारे में इज़रायली सेना को जानकारी दे दी गई थी, और साथ ही यह चेतावनी भी कि उसकी सेना की ओर से किए जा रहे हमले गाज़ा स्थित संयुक्त राष्ट्र परिसरों के लिए भी खतरा बने हुए हैं। इसके बावजूद इन स्कूलों पर गोले दाग कर इज़रायल ने बिना कुछ कहे बता दिया कि जब उसे संयुक्त राष्ट्र की परवाह नहीं है तो फिर बाकी देशों की बिसात क्या। इज़रायल यह कहकर बचने की कोशिश कर रहा है कि इन स्कूलों में हमास के सदस्य भी छुपे थे और वहां से वे उसकी सेना पर गोले दाग रहे थे। लेकिन उसकी इस बात को किसी कमज़ोर प्रलाप से ज़्यादा नहीं माना जा सकता। हर अपराधी अदालत में कहता है कि वह बेगुनाह है। पर बड़ा सवाल यह है कि क्या साठ साल से संयुक्त राष्ट्र का सदस्य होने के बावजूद इज़रायल की इस संगठन के प्रति भी कोई जवाबदेही नहीं है?
और इधर संयुक्त राष्ट्र की बेबसी देखिए कि बान की-मून इस हमले की निंदा करते हुए इतना ही कह पाए हैं कि यह सब कतई मंज़ूर नहीं है और ऐसा दोबारा नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन संयुक्त राष्ट्र की ओर से आगाह किए जाने के बावजूद जो बेगुनाह ज़िंदगियां मौत की आग में झोंक दी गईं, उसके लिए सज़ा क्या? वैसे गाज़ा में इज़रायली सेना के बढ़ते कदमों ने हमास के आतंकवादियों का नुकसान कम और आम लोगों का ज़्यादा किया है। कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग ने मंगलवार को ही अमेरिका में रह रही फलस्तीनी मूल की एक पत्रकार लैला अल-हद्दाद की गाज़ा में रह रहे उनके पिता से बात कराई, तो जो सच सामने आया वह इज़रायल के चेहरे से नकाब उतार फेंकने के लिए काफी है। इस बातचीत के बाद लैला ने अपने ब्लॉग पर अपने पिता के हवाले से लिखा है कि इज़रायली सेना फलस्तीनी नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रही है। घरों में घुसकर लोगों को बाहर निकाला जा रहा है ताकि इज़रायली सैनिक वहां से मोर्चा संभाल सकें। इज़रायल ने यही नीति वर्ष 2004 में रफा शहर में आतंकवादियों के खिलाफ छह दिन तक चलाए गए ऑपरेशन रेनबो और वर्ष 2007 में नबलूस में ऑपरेशन हॉट विंटर के दौरान भी अपनाई थी। तब इज़रायली सेना ने घरों व स्कूलों को सैनिक चौकियों में बदल दिया था। लेकिन इस बार नागरिकों को घरों से खदेड़ने अलावा उन्हें आतंकियों के खिलाफ गोला-बारूद दागने पर भी मजबूर किया जा रहा है। हालांकि, इज़रायल की हाईकोर्ट ने किसी भी युद्ध के दौरान ऐसी नीति अपनाने पर रोक लगा रखी है, लेकिन सेना निरंकुश होकर अपने काम को अंजाम दे रही है।
फलस्तीन के कई शहर ऐसे हैं जहां स्टोर खाली हो चुके हैं या तबाह कर दिए गए हैं। फल-सब्ज़ियों के लाले पड़े हैं और लोगों को ज़िंदा रहने के लिए ब्रेड खाकर गुजारा करना पड़ रहा है। हमलों के डर से लोग घर से बाहर नहीं निकल पा रहे। घर में रखा ब्रेड का स्टॉक कितने दिन चलेगा, इस सवाल का जवाब जानने से पहले लोग खुद से यह सवाल कर रहे हैं कि उनकी ज़िंदगी कितने दिन तक सुरक्षित है।
Comments
मार पङी तो दोष मढ रहा, आज उसीके मत्थे.
दोष उसीके मत्थे, जिसे मिटाना चाहा.
कब हमास ने माना था दुनियाँ का कहा.
कह साधक करनी का फ़ल मिल गया खास.
ईजरायल के हत्थे चढ गया आतंकी हमास.
दरअसल, मसला हमास या फिलिस्तीन का नहीं। इनकी भूमिका ठीक उसी तरह से है कि एक हमला करेगा तो दूसरा घायल होगा, एक मारेगा तो दूसरा मरेगा, एक डूबेगा तो दूसरा तरेगा...
ये तो बहाने हैं... जब मानव, मानवता का कवच उतार कर मानवता का ही कत्ल करने में जुट जाता है तो इन्हें ढूंढ़ा जाता है।
आपकी पोस्ट के आगे रखे राय के दानपात्र में कई विद्वजनों ने नोट-चिल्लर डाले। मेरी चवन्नी भी लीजिए।
जरूरी नहीं कि ईंट का जवाब पत्थर ही हो जरूरी नहीं कि जहर का उतारा जहर से ही हो जरूरी नहीं कि आतंक का जवाब उससे बड़ा आतंक हो
क्यों नहीं ईंट फेंकने वाले का घर बना देते क्यों नहीं जहर देने वाले को अमृत से नहला देते क्यों नहीं आतंक के आंगन में शांति फैला देते
अच्छा भाई, फिर मिलेंगे! जारी रहेगा मुलाकातों का सिलसिला... चलते-चलते
I believe India should take Israel as role model & do the same in POK.