तुम्हारे लिए - 1

1)
गुनगुनी धूप के जैसा था
तुम्हारा आना...

चटकने लगीं
मन के तन पर
जमी बर्फ की परतें
उम्मीदों ने फिर चाहा अँगड़ाई लेना
और धूप के परों पर सवार होकर
उड़ चली ज़िन्दगी

बुझता हुआ इक दिया
मानो
सूरज होने चला

2)
कभी तुमसे कहता था
लम्बी उम्र जियोगी तुम
बस, तुम्हारे ही बारे में सोच रहा था

ऐसा तुम्हें
अब नहीं कह पाता
घड़ी भर के लिए भी
दिमाग़ से ओझल जो नहीं होती तुम..

3)
भीगी आँखें लिए
मुस्करा देना
मुश्किल हो सकता है
किसी के लिए भी...

मुझे लेकिन
बहुत कोशिश नहीं करनी होती इसके लिए
मैं बस सोच लेता हूँ
तुम्हारे बारे में एक बार!!

Comments

Jo said…
kya baat hai sir..... direct dil se nikli hain.... :)
Ummed karti hu ki naye saal me apki or achchi rachnayein hamein padhne ko milengi...
Happy New Year...
dr mrunalinni said…
bahut khoob ajay.. panch tatv ko apni bhavnaose jod kar prem badhiya vyakt hua hai kavita mein.. baat dilse hai..:) dhoop ki tarha ud chali zindagi,, master phrase..
dr mrunalinni said…
har dukh mein har insaan kitna bhi sanjeeda ho, dilbar ki yaad ussey muskuraane pe majboor kar deti hain..KHOOBSURAT..
Ajay K. Garg said…
ज्योत्स्ना, प्रतिभा जी और मृणालिनी जी,
मेरा प्रयास पसंद करने के लिए दिल से आभार!!

Popular posts from this blog

ख़ामोशी के शब्द

धरती पर जन्नत है मालदीव

नई ग़ज़ल