पात्तया-1 : रंगीन शहर, बेमिसाल रंग
बैंकॉक के सबसे बड़े बस टर्मिनल मो चित से अपने
तय समय पर चली एयरकंडीशन्ड बस 165 किलोमीटर का सफर तय करके पौने दो घंटे बाद जब पात्तया
में दाखिल हुई, तब तक कुछ दिन से मन में उमड़ रहा एक अजीब-सा संशय उबलकर पक चुका
था। बहुतों से सुना था इस शहर के बारे में, पर बात सब एक तरह की करते थे; और वो ये कि ‘बहुत बिंदास शहर है पात्तया, बहुत खुलापन है वहां...उसके रौनक-मेले का तो
कहना ही क्या।’
संशय असल में इसी बात को लेकर था। मेरे जैसा
घुमक्कड़ इन्सान जो थोड़ा पैसा जोड़कर किसी सफ़र पर निकल जाने में यकीन रखता हो और
जगह-जगह की तहज़ीब व जीवनशैली से जान-पहचान बढ़ाने में सुकून पाता हो, वो कहीं पात्तया
जाकर ग़लती तो नहीं कर रहा। कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे आने वाले दो दिन केवल एक शहरनुमा
‘रेडलाइट एरिया’ में बीत जाएं। लेकिन, फिर दो बातें सोचकर मन को समझाया। एक तो यह कि कोई
जगह अगर सांस ले रही है तो वहां यकीनन हर वो रंग होगा जो किसी भी जगह के ज़िंदा
रहने के लिए ज़रूरी है; करना बस इतना होगा कि उन रंगों को
देखने लिए नज़रिया खुला रखा जाए। और दूसरी यह कि अगर पात्तया केवल वही है जो सुना
है, और उसके सिवा कुछ भी नहीं है; तो भी एक अलग तरह की जगह
को और ज़िंदगी जीने के अलग-से तरीके को नज़दीक से देखने-समझने का मौका मिलेगा।
लेकिन, वहां पर मेरे बिताए उन दो दिनों के दौरान पहले वाली बात सही निकली। पात्तया
में हर रंग है। यह शहर हर तरह के लोगों को गले से लगाता है;
हर मेहमान को किसी नए अनुभव से रू-ब-रू करा जाता है; यहां
आने वाले हर मुसाफिर, हर सैलानी को उसके हिसाब से समय बिताने के मौके देता है।
ख़ैर, मेरे सोचने में खलल बस के रुकने से पड़ा।
मैं पात्तया पहुंच चुका था। बस से उतरते ही मैंने ख़ुद को छोटे-से लेकिन साफ-सुथरे
बस स्टेशन पर पाया। ‘हम्म्म....
अच्छा है,’ पहली प्रतिक्रिया यही थी। जब किसी व्यक्ति,
वस्तु या जगह के बारे में कुछ नकारात्मक मन में चल रहा हो तो उसकी ज़रा-सी अच्छाई
भी राहत दे जाती है। पात्तया में मेरे साथ यही हुआ। मेरी उम्मीद बंधनी शुरू हो
गई। और सचमुच!!! पात्तया का हर कोना साफ-सुथरा नज़र आया। और
तो और, सड़क किनारे खाने-पीने के ठेलों पर भी सफाई कम नहीं थी.. तिस पर थाई खाने
के स्वाद का तो कहना ही क्या! छोटा-सा यह शहर बड़े दिलवाला
है, इसका अहसास वहां जाकर ही होता है।
बैंकॉक खाड़ी के पूर्वी किनारे पर उत्तर से दक्षिण
की तरफ फैला है पात्तया। यहां समंदर के साथ-साथ जो सड़क चलती है, उसे शहर की जान
कह सकते हैं। यही सड़क है जिसके दक्षिणी सिरे पर वॉकिंग स्ट्रीट मौजूद है। वॉकिंग
स्ट्रीट इसलिए कि शाम 6 बजे से अल-सुबह 3 बजे तक इस पर वाहन नहीं चलते। शाम गहराते
ही यहां की रौनक देखने लायक है, तिल रखने की जगह नहीं मिलती। करीब 800 मीटर लंबी
इस सड़क पर जब रोशनियों का महासागर लहराता है, तो रात में दिन होने अहसास होता है।
यह रेडलाइट एरिया है, जहां कदम-कदम पर बीयर बार हैं, डिस्कोथेक हैं, तेज़ संगीत का
शोर है और पारदर्शी कांच से झांकती ऐशगाहें हैं। इस सबके बावजूद इस सड़क पर हर
उम्र के और हर तरह के लोग मिल जाएंगे। शादीशुदा जोड़े भी यहां घूमते नज़र आएंगे।
और यही इस जगह की ख़ासियत है। वॉकिंग स्ट्रीट सिर्फ जिस्म का बाज़ार नहीं, यहां
घूमने वाला हर व्यक्ति ख़रीदार भी नहीं; असल में यहां के रंग को देखने का एक अलग अनुभव है जो दुनियाभर
के सैलानियों को अपनी तरफ खींचता है। यही वजह है कि इसे अक्सर दुनिया के दस बड़े आकर्षणों
में शामिल किया जाता है।
पात्तया की झोली में एक और ख़ूबसूरत नगीना है जिसे स्थानीय लोग आम
बोलचाल में कोरल द्वीप कहते हैं। यह मूंगे से बना है या नहीं, इस पर सवाल हो सकता
है… लेकिन इसकी ख़ूबसूरती
पर कोई सवाल नहीं है। हर रोज़ हज़ारों लोग- सिर्फ सैलानी नहीं, स्थानीय लोग भी- किनारे
से 8 किलोमीटर दूर स्थित इस द्वीप पर वक़्त बिताकर आते हैं। इसका असल नाम है ‘को लान’। थाई भाषा में ‘को’ का मतलब ‘द्वीप’ है। बैंकॉक
खाड़ी में एक-दूसरे से सटे हुए तीन द्वीप हैं- को लान, को साक, को क्रोक। इनमें से
को लान सबसे बड़ा है। बारीक मखमली सफेद रेत, पारदर्शी नीला पानी और ग़ज़ब का ताज़ा
सी-फूड। शोर-शराबे से दूर आराम करने और धूप स्नान के लिए बेहतरीन जगह। यहां कई सी-बीच
हैं, जिनमें तवान पर सबसे ज़्यादा भीड़ रहती है। इसके अलावा तोंगलोंग, तिएन, सामे
और नाओन भी हैं। यहां के लिए बाली हाय नामक घाट से सुबह 7 बजे से नौकाएं चलती हैं
जो आने–जाने के 60 बाट लेती हैं और 40 मिनट में ‘को लान’ पहुंचा देती हैं। ‘को लान’ से
आखिरी नौका शाम को 6 बजे चलती है।
कुछ बातें ज़हन में रखने के लिए
- पात्तया का बस स्टेशन नॉर्थ रोड पर है जो यहां की दो अन्य अहम सड़कों सेंट्रल रोड व साउथ रोड की तरह हमेशा व्यस्त रहती है। ये तीनों सड़कें एक-दूसरे के समानांतर हैं और पश्चिम से पूरब की ओर चलती हैं। सैलानियों की नज़र में इन तीनों में से सेंट्रल रोड, जिसे स्थानीय भाषा में पात्तया क्लांग कहते हैं, की अहमियत अधिक है।
- बस स्टेशन से बाहर निकलते ही बाईं तरफ पर्यटन कार्यालय है। अगर आप होटल बुकिंग करवाकर नहीं आए हैं तो यहां से करवा सकते हैं। इनके ऑनलाइन सिस्टम पर पात्तया के काफी होटल हैं।
- शहर के हर हिस्से के लिए बस स्टेशन से टुक-टुक चलते हैं जो दूरी के हिसाब से 10 से लेकर 30 बाट किराया लेते हैं। हर टुक-टुक का रूट तय है, इसलिए पहले बता दें कि कहां जाना है।
- सीधे एयरपोर्ट से पात्तया आना भी अब आसान है। पहले टैक्सी ही विकल्प था, जो 1500 बाट लेती है। बसें इक्का-दुक्का थीं। अब हर दो घंटे में बस है। अराइवल हॉल के गेट नंबर 7 व 8 से बस नंबर 389 पात्तया जाती है। किराया है 124 बाट।
- बैंकॉक से आ रहे हैं तो मो चित के अलावा एकामाई बस स्टेशन से हर आंधे घंटे में बसें हैं, जबकि साई ताई माई बस स्टेशन से हर एक घंटे बाद बस है।
- पात्तया में पैदल घूमने से अच्छा कोई विकल्प नहीं है। सारा शहर देख सकते हैं, आराम से ख़रीदारी कर सकते हैं। हां, पात्तया में फल बहुत वैरायटी के मिलते हैं।
यह यात्रा वृतांत 'दैनिक भास्कर' के हरियाणा, पंजाब एवं दिल्ली संस्करणों के साप्ताहिक परिशिष्ट 'रसरंग' के 5 फरवरी 2012 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
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