बिल्लू! इतना इमोशनल अत्याचार किसलिए रे..
प्यारे शाहरुख,
इस फ़िल्म दर्शक की तुम्हें राम-राम भइया। ...लेकिन बधाई कतई नहीं। किसलिए दी जाए बधाई?? अपने चाहने वालों का भरोसा तोड़ने के लिए??? `बिल्लू´ किसलिए देखने गया होगा कोई... सोचो, सोचो!! लारा दत्ता के लिए या इरफान के लिए? जवाब तुमको भी पता है। लोग तुम्हारे लिए जाते हैं.. क्योंकि वो तुम्हें प्यार करते हैं, तुम्हें चाहते हैं। इमोशनल है सबके सब। पर तुमने क..क..क..क..क्या किया उनके साथ! सवा दो घंटे तक घोर अत्याचार!! और फिर जाते-जाते मंच पर खड़े होकर दोस्ती के बारे में लंबी बयानबाजी कर गए और फिर से इमोशनल कर दिया। यानी, अत्याचार के बाद महा अत्याचार!! रेड चिली बैनर तले बनी तुम्हारी यह फ़िल्म इतनी फीकी निकलेगी कि बाद में ग्रीन चिली खाकर मुंह का स्वाद फिर से बनाना पड़े... ऐसा नहीं सोचा था।
और हां, फ़िल्म के शुरू में तुम्हारे क़िरदार ने `बुदबुदा गांव´ का नाम बुदबुदाया था... वो भला क्योंकर??? उसका लॉजिक तो आख़िर तक साफ नहीं हो पाया। तुम्हारे क़िरदार को पता था कि उसका बचपन का दोस्त वहीं मिलेगा? यह तो सिर्फ फ़िल्म के निर्देशक प्रियदर्शन को पता था, और साथ ही कहानी लिखने वाले को पता था। तो फिर दर्शक को यह कैसे पता चले? प्रियदर्शन तो अपनी फ़िल्मों में ग्रामीण परिवेश के दर्शन करवाकर सबके प्रिय पहले ही हो चुके हैं। इस फ़िल्म में भी उन्होंने वहीं करने की कोशिश की है। लेकिन इस स्तर की नहीं है फ़िल्म कि इसे तुम्हारे नाम के साथ जोड़कर देखा जाए।
फ़िल्म देखकर कभी तुम्हारी कही वो बात याद आ गई कि- मैं दुनिया का सबसे बड़ा मार्केटिंग एजेंट हूं। भइये, ख़ूब अच्छे से बेचने की कोशिश की है अपनी इमेज को साहिर खान के क़िरदार में ढाल कर। लेकिन यह फ़िल्म है, कोई बाज़ार नहीं। ऐसे में इरफान और लारा के अच्छे काम के बल पर फ़िल्म दो-चार हफ्ते निकाल लेगी, इसमें संदेह है। ना-ना, दीपिका, करीना और प्रियंका के लटके-झटके भी नहीं खींचने वाले दर्शक को। आज का दर्शक समझदार है, उसे दमदार कहानी चाहिए। ऐसी कहानी जिसमें वो ख़ुद को महसूस कर सके। लेकिन इस फ़िल्म में वो ख़ुद को न तुम्हारे क़िरदार से जोड़ पाता है, न बिल्लू के। जिस तरह एक समुदाय के विरोध के चलते फ़िल्म के टाइटल पर, इसके एक गाने और कुछ संवादों पर कैंची चलानी पड़ी, उसी तरह अपने चाहने वालों के जज़्बात पर भी साफ-साफ कैंची चलाई गई दिखती है।
Comments
But loved your writing style. Keep it up.
अब अपन फिल्म देखने नहीं जाएंगे.शुक्रिया
sundar rachna ke liye badhai..
अम्बरीन, समीर.. अंदाज़ को थोडा अलग करने की कोशिश थी, ख़ुशी हुई की वो कोशिश सफल रही
जगदीश भाई, महेश, मोहन.. थैंक यू वेरी मच!!