दोस्तों के साथ ही कर पाएंगे ‘ग्रैंड मस्ती’
यह फ़िल्म देखने का मन बनाने से पहले कृपया ये तीन चेतावनियां ज़रूर पढ़ लें...
- यह परिवार के साथ देखे जाने वाली फ़िल्म कतई नहीं है। ऐसा न हो कि आप इस चेतावनी को नज़रअंदाज़ करते हुए परिवार को अपने साथ सिनेमा हॉल में ले जाएं और फिर पहले दो-चार मिनट में ही अपने अगल-बगल बैठे परिजनों से आंख मिलाने तक की हिम्मत न कर पाएं।
- यह डबल-मीनिंग संवादों, कामुक हाव-भाव और लगभग हर बात में सेक्सुअल अंडरटोन वाली फ़िल्म है। यहां तक कि इसका टाइटल गीत भी सेक्सुअल हिंट से लबरेज़ है। इसे देखते वक़्त बेहद खुले दिमाग़ की ज़रूरत है। उतना ही, जितना आप क़रीबी दोस्तों के साथ नॉन-वेज जोक्स सांझा करते वक़्त खुला रखते हैं। यानी, जो आप अकेले में सोचते हैं या जैसी बातें पक्के यारों के बीच बैठे कर लेते हैं, वह सब परदे पर नज़र आने वाला है।
- दिमाग़ को घर छोड़कर ही जाना पड़ेगा। वरना, शरीर का 1200 क्यूबिक सेंटीमीटर आकार तथा 1.5 किलो वजन वाला यह सबसे संवेदनशील हिस्सा लगातार 135 मिनट तक तकलीफ़ देता रहेगा।
निर्देशक इंद्र कुमार की यह फ़िल्म
उन दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई गई है जो हर बात को नैतिकता की कसौटी पर नहीं
कसते और जिन्हें सेलफ़ोन पर सेक्स क्लिप्स डाउनलोड करके देखने में कोई गुरेज़ नहीं
है। फ़िल्म देखते हुए एक सवाल अगर ख़ुद से पूछ लेंगे कि परदे पर जो तीन मुख्य किरदार
दिखाए जा रहे हैं, क्या हम असल ज़िंदगी में वैसे नहीं होते? जवाब यही मिलेगा कि सोचते तो हम सब कमोबेश अमर (रीतेश देशमुख), मीत
(विवेक ओबेरॉय) और प्रेम (आफ़ताब शिवदासानी) जैसा ही हैं, लेकिन उसे कहने या करने
की हिम्मत नहीं जुटा पाते। सबसे ज़्यादा डर हमें व्यक्तिगत छवि तथा अपने नज़दीकी रिश्तों
को खोने का रहता है। ...और जब-जहां ये डर नहीं होते, तब-तहां हम अपनी असलियत
दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते। एक मुखौटा हम हमेशा लगाए रहते हैं...और इस फ़िल्म
या ऐसी ही दूसरी फ़िल्मों पर नैतिकता के सवाल उठाने वाले लोग उसी मुखौटे के पीछे
छुपे रहने में सहूलियत महसूस करते हैं।
फ़िल्म-मेकिंग के हिसाब से ‘ग्रैंड मस्ती’ को आप अच्छे अंकों
में ही पास करना चाहेंगे। अच्छे शॉट्स लिए गए हैं, जहां-तहां ख़ासकर अंतिम दृश्यों
में विज़ुअल इफ़ेक्ट्स का बढ़िया इस्तेमाल हुआ है। अंत में इमारत की छत से लटकने
के दृश्य में क्रोमा का प्रयोग किया गया है। ऐसे दृश्य क्रोमा तकनीक से ही बनते
हैं, लेकिन ख़याल यह रखा जाता है कि देखने वाले को वे दृश्य असली लगें। जबकि, ‘ग्रैंड मस्ती’ के इस सीन को
अलग-अलग कोणों से देखने पर इसमें छुपी कृत्रिमता साफ़ झलकती है। जहां तक कलाकारों की बात है, तो फ़िल्म में इनकी भरभार
है। आफ़ताब, रीतेश तथा विवेक के पास जो पात्र थे निभाने के लिए, उनमें वे जम रहे
हैं। तीनों के चेहरे पर वासना बहती साफ़ नज़र आती हैं, ख़ासकर आफ़ताब के। अपने छोटे
रोल के बावजूद सुरेश मेनन इस फ़िल्म का हाई-पॉइंट कहे जाएंगे। फ़िल्म में छह मुख्य
महिला किरदार हैं, जिनमें बेहतर उपस्थिति करिश्मा तन्ना, सोनाली कुलकर्णी, मंजरी फड़नीस
तथा मरियम ज़कारिया की ही रही है। ब्रूना अब्दुल्ला और क़ायनात अरोड़ा औसत ही हैं,
उनसे बहुत उम्मीद नहीं लगाई जा सकती। फ़िल्म का संगीत तेज़ है, पर कर्णप्रिय है।
Comments