ज़िंदा कविता की तलाश
बहुत दिनों से नहीं पढ़ी
कविता जैसी कोई कविता
कविता जैसी कोई कविता
वो कविता
जिसे पढ़कर लगे
मैं हो आया हूं
उन गली-कूचों में
जहां बसते हैं मिट्टी में सांस फूंकते लोग
जहां आज भी ठंडक देती है हवा
जहां नहीं भूले हैं लोग
मनुष्य होने का मतलब
कविता
जिसे पढ़ूं तो लगे
कि छू आया हूं उन संवेदनाओं को
जो अक्सर रह जाती हैं अछूती
आडम्बर परोसने की होड़ में
जो जुड़ी रहती हैं धरती से
और आकाश से करती हैं बात
हाथ बढ़ाकर सहारा देते समय
नहीं देखतीं जो दिन और रात
कविता
जो रची न गई हो
केवल रचे जाने के लिए
जो न तोड़े दम
कवि से आलोचक
आलोचक से किताब तक के सफर में
जो हो शाश्वत इस तरह
कि युगों के सीमाएं भी भूल जाएं अपने अर्थ
ऐसी कविता
जो न हो
आत्ममुग्धि के लिए बुना हुआ शब्दजाल
उस कविता के शब्द
अर्थ गढ़ते हों
और उन अर्थों में
जीवन के असल रंग झरते हों
जिसके शब्द सपनीले न हों बेशक
लेकिन सपनों की बात करते हों
कविता
जो पहुंचे उन तक
जिनकी वो बात करती है
ताकि लगे उन्हें भी
कि उनके दुःख-दर्द का है साझीदार कोई
पहुंच रही है उनकी पीड़ा
उन तक जो कहते हैं कि हमने
उठाया है अपनी कलम चलाकर
क्रांति लाने का बीड़ा
सच!
बहुत दिनों से
नहीं पढ़ी कोई ऐसी कविता
जिसे पढ़कर लगे कि
सचमुच पढ़ी है कोई कविता
जिसे पढ़कर लगे
मैं हो आया हूं
उन गली-कूचों में
जहां बसते हैं मिट्टी में सांस फूंकते लोग
जहां आज भी ठंडक देती है हवा
जहां नहीं भूले हैं लोग
मनुष्य होने का मतलब
कविता
जिसे पढ़ूं तो लगे
कि छू आया हूं उन संवेदनाओं को
जो अक्सर रह जाती हैं अछूती
आडम्बर परोसने की होड़ में
जो जुड़ी रहती हैं धरती से
और आकाश से करती हैं बात
हाथ बढ़ाकर सहारा देते समय
नहीं देखतीं जो दिन और रात
कविता
जो रची न गई हो
केवल रचे जाने के लिए
जो न तोड़े दम
कवि से आलोचक
आलोचक से किताब तक के सफर में
जो हो शाश्वत इस तरह
कि युगों के सीमाएं भी भूल जाएं अपने अर्थ
ऐसी कविता
जो न हो
आत्ममुग्धि के लिए बुना हुआ शब्दजाल
उस कविता के शब्द
अर्थ गढ़ते हों
और उन अर्थों में
जीवन के असल रंग झरते हों
जिसके शब्द सपनीले न हों बेशक
लेकिन सपनों की बात करते हों
कविता
जो पहुंचे उन तक
जिनकी वो बात करती है
ताकि लगे उन्हें भी
कि उनके दुःख-दर्द का है साझीदार कोई
पहुंच रही है उनकी पीड़ा
उन तक जो कहते हैं कि हमने
उठाया है अपनी कलम चलाकर
क्रांति लाने का बीड़ा
सच!
बहुत दिनों से
नहीं पढ़ी कोई ऐसी कविता
जिसे पढ़कर लगे कि
सचमुच पढ़ी है कोई कविता
Comments
लेकिन सपनों की बात करते हों..
वाकई आपने बड़ी बेबाक सच्चाई लिखी है। अब न वो कवि रहे, न रही वह कविता।