पलटिए थाई विरासत के पन्नों को
नदी किनारे बने हैं राजमहल और सूर्योदय मंदिर... मंदिर के दूसरे तल से उस पार राजमहल दिखता है |
बैंकॉक
के चमचमाते मॉल्स में शॉपिंग करने और भीड़भाड़ वाली सड़कों पर थाई भोजन का स्वाद लेते
हुए तफरीह करने के अलावा इस शहर का असल आकर्षण इसकी आलीशान विरासत है। इस विरासत को
देखे-समझे बिना ही अगर कोई बैंकॉक को अलविदा कहकर जाता है तो समझिए वो बहुत कुछ
छोड़कर जा रहा है। अपनी पहली थाईलैंड यात्रा के दौरान बैंकॉक में दो दिन गुजारने
के बावजूद मैं इसकी विरासत से रू-ब-रू होने का मौका नहीं निकाल पाया था। एक कसक मन
में बनी रही...और यह तब तक ख़त्म नहीं हुई जब तक अपनी अगली यात्रा में मैं इन
जगहों पर हो नहीं आया। वट अरुण मंदिर, राजसी महल तथा एमरेल्ड बुद्ध मंदिर में
विचरने और छोटे-से-छोटे विवरण की तस्वीर ज़हन पर उतारने के बाद एक सवाल मन में आया
कि क्या अपनी पहली यात्रा में मैं सचमुच बैंकॉंक होकर गया था, या कि बस इस भुलावे
में जी रहा था कि मैंने बैंकॉक देख रखा है। ...और तभी मुझे एक और भुलावे की याद
आई- जो हमारी ट्रेवल एजेंसियां अपने ग्राहकों को टूर पैकेज की शक्ल में देती है; जिसमें आधे दिन का बैंकॉक सिटी टूर शामिल रहता है। पूरे शहर की बात तो छोड़िए,
बैंकॉक की ऐतिहासिक धरोहर को अच्छे-से देखने के लिए ही पूरा एक दिन चाहिए। आधे दिन
के टूर को तो लॉलीपॉप ही समझ लीजिए।
राजमहल परिसर की भव्यता बेमिसाल
राजमहल देखते ही बनता है। महल परिसर में बनी हर इमारत विलासिता से रू-ब-रू कराती है |
यह थाई
सम्राट का निवास स्थान है और इसी परिसर में एमरेल्ड बुद्ध मंदिर स्थित है। छाओ
प्रया नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित यह भव्य परिसर साल 1782 में सम्राट राम प्रथम
के शासनकाल में बना। इससे पहले शाही परिवार नदी के पश्चिमी किनारे पर दोनबुरी
(धनपुरी) में बने महल में रहता था। लेकिन राम प्रथम ने पूर्वी किनारे को बेहतर
मानते हुए वहां 2 लाख 18 हज़ार वर्ग मीटर में इस परिसर का निर्माण कराया। कुल 1900
मीटर लंबी चहारदीवारी वाले इस परिसर को अच्छे-से देखने के लिए कम-से-कम पांच घंटे चाहिए।
यूं तो इस जगह की भव्यता का अंदाज़ा दूर से हो जाता है, पर मुख्य द्वार से प्रवेश
करने के बाद आप इसकी सुंदरता को अपलक निहारे बिना नहीं रह सकते। मुख्य द्वार से
100 मीटर अंदर बाईं ओर टिकट काउंटर है। विदेशियों के लिए टिकट 500 बाट है। टिकट
लेते ही बाईं ओर संकरी गली में राजसी संग्रहालय है। मुख्य महल में प्रवेश करने से
पहले थाई राजघराने से जुड़ी निशानियों से परिचय बढ़ाने से बेहतर बात भला और क्या
होगी! जब तक आप लगभग दो घंटे लगाकर इस संग्रहालय
से बाहर निकलते हैं, तब तक राजपरिवार के इतिहास व जीवन बारे में आपकी जानकारी में
ख़ासी बढ़ोतरी हो चुकी होती है।
थाई लोगों का सबसे श्रद्धेय मंदिर
राजमहल के मंदिरों वाले हिस्से में स्थानीय लोग बड़ी संख्या में पूजा-अर्चना करने आते हैं |
एमरेल्ड बुद्ध मंदिर का प्रवेश द्वार |
संग्रहालय
से निकलकर आगे जाते हैं तो महल परिसर का वो हिस्सा आता है जहां मंदिरों, पैगोडा तथा
भित्तिचित्रों की भरमार है। यह परिसर का पवित्र क्षेत्र है। थाई लोगों के लिए
श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र वट प्रा कियू यानी एमरेल्ड बुद्ध मंदिर यहीं पर है। वैसे,
रोचक बात है कि यहां स्थापित बुद्ध की जिस नन्ही-सी प्रतिमा को लोग एमरेल्ड यानी
पन्ने से बना बुद्ध कहते हैं, वह असल में जेड यानी हरिताश्म की बनी है। साल 1434
में एक भिक्षु को यह प्रतिमा चियांग राई के एक स्तूप में प्लास्टर में लिपटी मिली
थी। उसने इसे खुरचा तो अंदर हरा पत्थर निकला जिसे भिक्षु ने पन्ना समझ लिया। तभी
से इसका नाम एमरेल्ड बुद्ध पड़ गया। यहां यह प्रतिमा सोने के सिंहासन पर विराजमान है।
मंदिर का भवन असल में एक शाही मठ है जहां आवासीय गृह नहीं हैं, केवल दीक्षागृह
है। यहां ग़ज़ब की चुप्पी रहती है और असीम शांति का अनुभव होता है। मंदिर के भीतर तस्वीर खींचने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर के
आसपास कई अन्य छोटे मंदिर व पैगोडा हैं। राजमहल के मंदिरों वाले इस पूरे हिस्से की ख़ासियत इसकी चहारदीवारी
पर बने भित्तिचित्र हैं, जो रामायण की कहानी बयान करते हैं।
विलासिता का उदाहरण है राजसी आवास
मंदिर
वाले हिस्से से दक्षिण की तरफ बाहर निकलेंगे तो दायीं ओर थाई वास्तुकला के कुछ अद्वितीय
नमूने नज़र आएंगे। सफेद रंग का जो सबसे बड़ा भवन दिखेगा, वो चक्री महाप्रसाद है जिसे
शाही परिसर बनने के सौ साल बाद 1882 में सम्राट शूलालंकरण (राम पंचम) ने
बनवाया। इन दिनों यहां विदेशी मेहमानों का स्वागत किया जाता है। इसकी भीतरी
दीवारों पर मेहमानों के स्वागत के चित्र टंगे हैं। राजमहल का एक अन्य आकर्षण परम बिमान महल है जिसे मंदिर क्षेत्र से बाहर निकलते
ही सामने देख सकते हैं। इसे 1903 में सम्राट राम पंचम ने युवराज राम षष्टम के
लिए बनवाया था। समय-समय पर इसे थाई सम्राट अपने शाही निवास के रूप में इस्तेमाल
करते रहे हैं। इसकी ख़ासियत यह है कि इसके चौकोर गुंबद पर चारों दिशाओं में वैदिक
देवों के चित्र हैं। ये देव हैं- इन्द्र, यम, वरुण और अग्नि।
सूर्योदय
का मंदिर वट अरुण
सूर्योदय मंदिर जिसका मध्य पैगोडा 250 फीट ऊंचा है। मध्य पैगोडा मेरु पर्वत का प्रतीक है |
मंदिर के पैगोडा पर बारीक नक्काशी |
राजमहल
परिसर के दक्षिण-पश्चिम में नदी के उस पार है सूर्योदय मंदिर। यह वास्तव में मठ है
और इसका पूरा नाम वट अरुण राजावरराम राजावरमहाविहान है। इसके 250 फीट ऊंचे मध्य पैगोडा
पर सुबह सूरज की लालिमा पड़ती है तो यह मोती जैसी आभा से चमक उठता है। मध्य पैगोडा,
जो मेरु पर्वत का प्रतीक है, चारों दिशाओं में चार छोटे पैगोडा से घिरा है। इन सब
पैगोडा की विशेषता यह है कि इन पर पोर्सलीन से बारीक नक्काशी की गई है। ये वास्तुकला
के अनूठे नमूने हैं। पास में बुद्ध मंदिर है। यह मंदिर परिसर पुराने राजमहल का
हिस्सा था और तब से यहां है जब थाईलैंड की राजधानी अयुध्या हुआ करती थी। एमरेल्ड
बुद्ध की प्रतिमा पहले यहीं पर थी। लेकिन साल 1785 में सम्राट राम प्रथम इसे नदी
के दूसरी ओर बने राजमहल परिसर में ले गए थे।
ग़ौर फरमाएं....
- राजमहल के 500 बाट के टिकट में संग्रहालय तथा एमरेल्ड बुद्ध मंदिर का टिकट भी शामिल है।
- राजमहल परिसर में प्रवेश सुबह 8.30 बजे खुलता है और दोपहर बाद 3.30 बजे तक चलता है। 5.00 बजे तक बाहर आना होता है।
- विदेशियों के लिए वट अरुण की टिकट 50 बाट है।
- वट अरुण और राजमहल परिसर के बीच आने-जाने के लिए टैक्सी के बजाय छाओ प्रया नदी में नाव सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसकी टिकट 10 बाट है।
यह यात्रा वृतांत 'दैनिक भास्कर' के हरियाणा, पंजाब एवं दिल्ली संस्करणों के साप्ताहिक परिशिष्ट 'रसरंग' के 5 मार्च 2012 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
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