यातना के सिवा कुछ और नहीं है ‘इसक’
पहले कुछ सवाल.... ! क्या बनारसी होने का मतलब केवल ख़ून-ख़राबा करना और बात-बात पर बंदूक निकाल लेना है ? क्या बनारस और आस-पास के इलाक़ों में नक्सली हथियार लहराते हुए खुले घूमते हैं और ‘ लाल सलाम, लाल सलाम ’ का उद्घोष करते नौकाओं में बैठ कहीं भी बेरोक-टोक आ–जा सकते हैं ? क्या हमारी कानून-व्यवस्था इतनी कुंद पड़ गई है कि भारत का एक तहज़ीब वाला शहर यूं लगे मानो हम सोमालिया के जलदस्युओं के अधिकार-क्षेत्र में हों ? क्या नक्सल सरदार इतने मूढ़ होते हैं कि रेत के खनन का अधिकार देने के एक इंस्पेक्टर जैसे नगण्य अधिकारी के वायदे पर एक भरी-पूरी ख़ूनी जंग छेड़ देते हैं ? क्या बनारस में स्पाइरमैन पाया जाता है जो कहीं भी चढ़-उतर सकता है, छलांग लगाकर एक घर से दूसरे घर में पहुंच जाता है ? क्या यह स्पाइडरमैन जब दुश्मन परिवार की छत पर पहुंचता है तो एच.जी. वेल्स का ‘ इनविज़िबल मैन ’ हो जाता है ? क्या शिव की नगरी काशी में कामदेव एक इन्सान के रूप में अवतार ले चुके हैं जो नशे की हालत में एक चुंबन का तीर चलाकर ही नायिका को अपना बना लेते हैं ? अगर आप इन सवालों के जवाब हर हाल में ‘ हां ’ में चाहते हैं तो...