पल-पल गुदगुदा जाती है ‘चोर चोर सुपर चोर’
अगर हास्य केवल संवादों में होता तो चार्ली चैपलिन को कोई नहीं जान पाता। असल हास्य परिस्थितियों में छुपा होता है और संवाद उस हास्य के सोने पर महज़ सुहागा बुरकने का काम करते हैं। यह बात शायद युवा निर्देशक के. राजेश अच्छे से समझते हैं। अपनी फ़िल्म ‘चोर चोर सुपर चोर’ में उन्होंने इसी बात को हथियार बनाया है। अपनी इसी ख़ासियत की वजह से ‘चोर चोर सुपर चोर’ ऐसी हल्की-फुल्की कॉमेडी के रूप में परदे पर चलती जाती है जिसके ज़्यादातर कलाकार नए हैं और हालात हमें परिचित-से लगते हैं।
कोई किसी भरोसे से खेलकर उसका फ़ायदा उठा जाए तो उंगली टेढ़ी करना बनता है, बॉस! इस फ़िल्म का सेंट्रल आयडिया यही है। यानी, धोखेबाज़ों के लिए चोर से सुपर चोर हो जाओ। जेबकतरे के रूप में अपनी पहचान से छुटकारा पाकर मेहनत से रोज़ी-रोटी कमाने निकले सतबीर को जल्द समझ आ जाता है कि शराफ़त का रास्ता इतना भी आसान नहीं है और यह दुनिया प्यार को हथियार बनाकर चूना लगाने के लिए तैयार बैठी है। ऐसे में ख़ुद को बचाने के लिए मन-मसोसकर उसे उसी रास्ते पर चलना होता है जिसे वह छोड़ना चाह रहा होता है। ‘लोहे को लोहा काटता है’ की तर्ज़ पर चलते हुए जो हालात बनते जाते हैं वे दर्शक को भीतर तक गुदगुदाने का माद्दा समेटे हुए हैं। कलाकारों को रामलीला के किरदारों के गेट-अप में पेश करके कॉमेडी पैदा करने जैसे कुछेक मौक़े फ़िल्म को करारापन दे गए हैं।
दिल्ली के जेबकतरों की दुनिया के भीतर झांकती 99 मिनट की इस फ़िल्म में कितनी ही ऐसी वास्तविकताएं समेटी गई हैं जिनसे हम रोज़ दो-चार होते हैं। फ़िल्म की ख़ूबी इसकी लोकेशन्स हैं जो कहीं भी कहानी के काल्पनिक होने का अहसास नहीं होने देतीं। तिस पर, अधिकतर कलाकार नए होना भी फ़िल्म को विशिष्टता दे जाता है। दर्शक जब कोई चेहरा पहली बार देखता है और पात्र निभाने वाला कलाकार मंझा हुआ है तो दर्शक को वह किरदार असली लगने लगता है। ऐसे में वह उन किरदारों में डूबकर परदे पर चलती कहानी का मज़ा लेता है।
फ़िल्म का हर कलाकार पीठ ठोंकने लायक है। लगभग सभी कलाकार थियेटर की दुनिया से जुड़े रहे हैं और इसकी छाप परदे पर नज़र भी आती है। सतबीर की भूमिका निभाने वाले दीपक डोबरियाल तो ख़ैर असीमित प्रतिभा के धनी हैं ही, वह ख़ुद को किसी भी किरदार में आसानी से ढाल लेते हैं; नायिका की भूमिका में प्रिया बठीजा भी असरदार रही हैं। प्रिया को दर्शकों ने अब तक टीवी के परदे पर ही देखा था। वहीं, शुक्ला की भूमिका में अवतार साहनी, पारुल की भूमिका में पारु उमा, रोनी के किरदार में अंशुल कटारिया के अलावा चंद्रहास तिवारी, नितिन गोयल, जगत रावत, ब्रहम मिश्र, श्रीकांत वर्मा एवं आलोक चतुर्वेदी ने बेहतरीन काम किया है। तेज़ी से भागती पटकथा में दर्शक के लिए ऊबने का मौका कहीं नहीं है। कम बजट में परिवार के साथ बैठकर देखने लायक अच्छी मनोरंजक फ़िल्में कैसे बनती हैं, ‘चोर चोर सुपर चोर’ इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण है।
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