अच्छी थी सगाई लेकिन ठंडी रही विदाई
केवल चार साल बीते हैं जब इमेजिन टीवी पर अजित अंजुम का सीरियल ‘लुटेरी दुल्हन’ आया करता था। कोई पांच महीने चलने वाले इस सीरियल में एक ठग परिवार गोद ली हुई बेटी बिल्लो से लोगों की शादी करवाता था और बिल्लो अगले दिन सारा माल-असबाब लेकर चंपत हो जाती थी। यह शो उत्तर भारत की कुछ असल घटनाओं पर आधारित था जो बाद में मीडिया में भी चर्चित हुआ था
ऐसे में जब आप ठीक इसी विषय पर बनी फिल्म देखने जाते हैं, तो यह उम्मीद लेकर जाते हैं कि बड़े परदे पर कथानक का लेवल भी बड़ा होगा और कुछ नया बी देखने को मिलेगा। फिल्म शुरू होने पर यह उम्मीद साकार होने के आसार भी नजर आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, उम्मीद का ग्राफ दरकने लगता है। अंत तक पहुंचते-पहुंचते फिल्म की पकड़ ढीली होती जाती है और बोझिलता महसूस होने लगती है। फिल्म केवल 100 मिनट की है, और अगर इतनी-सी देर में दर्शक ऊबने लगे तो फिर फिल्म यकीनन किन्हीं बड़ी खामियों की जकड़ में है।
‘डॉली की डोली’ के कमजोर होते जाने की दो वजहें साफ हैं। एक तो यह कि शुरू में फिल्म का जो स्तर राजकुमार राव अपने अभिनय से स्थापित करते हैं, उस स्तर को बाद में बाकी कलाकार संभाल नहीं पाते हैं। दूसरे, ठगी का तरीका एक ही है, तो पहली घटना के बाद आगे जाकर ऊब पसरना स्वाभाविक है। एक वजह यह भी है कि फिल्मकार ने कुछ जगहों पर हास्य का पुट देने की गैर-जरूरी कोशिश की है, लेकिन यह कोशिश हर बार निशाने पर नहीं बैठी है। अब चाहे वो डॉली (सोमन कपूर) की सोनू सेहरावत (राजकुमार राव) के साथ शादी में एंकर से उल्टी-सीधी अंग्रेजी बुलवाना हो, या फिर मनजोत चड्ढा (वरुण शर्मा) की शादी के वक्त उसके दोस्त का बेवजह चिपकते जाना हो। फिल्म में हास्य का पुट अगर कहीं आ पाया है तो वो सिचुएशनल ही है। यह या तो अर्चना पूरन सिंह के किरदार के साथ आता है या फिर डॉली के इश्क में सिर से पैर तक डूबे राजकुमार राव के किरदार के साथ। कहीं-कहीं वरुण शर्मा भी मुस्कराने को मजबूर करते हैं, मगर उन्हें संवाद बोलने के दौरान अपने हाव-भाव संवारने पर कड़ी मेहनत करनी होगी।
वैसे हाव-भाव के मामले में सोनम भी उन्नीस ही हैं। एक खूबसूरत ठग लड़की के किरदार में वह सटीक बैठी हैं, लेकिन अक्सर उनका चेहरा गूंगा रह गया है। मनोज जोशी का उपयोग ज्यादा नहीं हुआ है, पुलकित सम्राट साधारण हैं। अभिनय के मामले में कोई असर छोड़ता है तो पहली हैं अर्चना जो अपने पंजाबी महिला की भूमिका में पूरी तरह से डूबी हैं। दूसरे हैं हरियाणवी छोरे के किरदार में राजकुमार, जिन्होंने शायद अपनी भूमिका घोंटकर पी ली है। मो. जीशान अयूब आपको पीयूष मिश्रा की युवावस्था की झलक देते हैं, लेकिन अपनी भूमिका से वे एक संभावनाशील अभिनेता के तौर पर सामने आते हैं। लब्बोलुआब यह कि ‘डॉली की डोली’ देखकर आप संतुष्टि का अहसास लेकर वापस नहीं जा पाते हैं।
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